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गोरखपुर

यह आंकड़ें आपको विचलित कर सकते हैं, नहीं चेते तो मुख्यमंत्री का शहर बूंद-बूंद को तरस जाएगा

-ऐसे विकास की अंधदौड़ में तो बूंद-बूंद पानी को तरस जाएंगे…
-बर्बाद होते मीठे पानी को बचाने का नहीं हो रहा उपाय, हर साल नीचे जा रहा भूगर्भ जलस्तर

गोरखपुरJun 03, 2019 / 04:38 pm

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

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यह आंकड़ें आपको विचलित कर सकते हैं, नहीं चेते तो मुख्यमंत्री का शहर बूंद-बूंद को तरस जाएगा

शहर के विकास की कहानी कह रही बहुमंजिली इमारतें खुश होने का मौका तो दे ही रही हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए मुश्किलें भी गढ़ रही। बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं के निर्माण में हजारों हजार लीटर पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस निर्माण और खुदाई में जो पानी बर्बाद हो रहा है वह पीने लायक मीठा जल है जिसका दुरुपयोग आने वाले दिनों में हमारे लिए संकट साबित होने जा रहा है।
गोरखपुर शहर और आसपास के क्षेत्र में विकास सरपट गति से गतिमान है। यहां हजारों करोड़ की लागत से निजी व सरकारी भवनों व बहुमंजिली इमारतों का निर्माण कार्य हो रहा है। जाने अनजाने में इस निर्माण कार्य के दौरान पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है। सबसे अहम यह कि इन निर्माण कार्याें में बेहद लापरवाहपूर्ण तरीके से भूगर्भ जल का दोहन हो रहा है। जलादोहन से जलस्तर तो नीचे जा ही रहा है, इससे हजारों-लाखों लीटर मीठा पानी भी बर्बाद हो रहा। इस बर्बादी की वजह से आने वाले दिनों में जलसंकट से गुजरना पड़े तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
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भूगर्भ जलस्तर गिरने से पानी के लिए मच सकता है हाहाकार

भूगर्भ जल पीने के पानी का स्रोत है। यह पीने के पानी का एक प्राकृतिक स्रोत है। यह जल चट्टानों और मिट्टी से रिसकर जमीन के अंदर एकत्र होता है। जमीन के अंदर जहां भूजल जमा होता है उसे जलभूत यानी एक्विफर कहते हैं। जमीन की सतह से जिस स्तर पर यह पानी मिलता है उसे भूजल स्तर कहते हैं। यह स्तर बढ़ता घटता रहता है। अधिक दोहन की वजह से यह स्तर घटता है और अधिक नीचे चला गया तो उस क्षेत्र में पानी के लिए हाहाकार मच सकता है। हैंडपंप, कुंआ आदि सूखने लगता है। पेयजल का संकट उत्पन्न हो जाता है।
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एक बार जलस्तर घट जाए तो संकट में हो सकता है आने वाला दिन
जानकारों के मुताबिक जलस्तर अगर एक बार छह मीटर से अधिक गिर जाता है तो आने वाले दिनों में यह संकट का संकेत है। क्योंकि वर्षा होने के बाद भी भूजल एकत्र नहीं हो पाता। इस वजह से अनावश्यक रूप से जलादोहन पर रोक लगाना और जलसंरक्षण को बढ़ावा देना बेहद जरूरी हो जाता है।
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गोरखपुर के कई क्षेत्रों में भूजल स्तर नीचे गिरा

गोरखपुर शहर में निर्माण कार्य बेहद तेज गति से हो रहा। सरकारी व गैर सरकारी तमाम बहुमंजिली इमारतें यहां बनाई जा रही है। इस निर्माण में काफी पानी बर्बाद हो रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक शहर के कई इलाकों में भूगर्भ जलस्तर करीब दो से ढाई मीटर तक नीचे गिरा है। जानकार बताते हैं कि अगर इसी तेजी से जलस्तर गिरता रहा तो आने वाले दिनों में क्षेत्र के लोगों को भारी जलसंकट से जूझना पड़ सकता है।
जल संरक्षण की दिशा में काम करने वाले बताते हैं कि बहुमंजिली इमारतों को बनाने में लाखों लीटर पानी की बर्बादी को रोकने के लिए उपाय होने चाहिए। बिना पानी निकाले बहुमंजिली इमारतों की नींव तो खड़ी की नहीं जा सकती, इसके लिए उस निकलने वाले पानी के सदुपयोग का इंतजाम करना चाहिए। रेन वाॅटर हार्वेस्टिंग की तरह ग्राउंड वाॅटर हार्वेस्टिंग की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
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शहर का इस तरह गिर रहा भूगर्भ जलस्तर, नहीं सुधरे तो बनेगा संकट
क्षेत्र वर्ष-2016 वर्ष-2017 वर्ष-2018
नंदानगर 5 मीटर 5.32 मीटर 5.55 मीटर
तारामंडल 7.21 मीटर 6.44 मीटर 7.99 मीटर

नौसढ़ 5.70 मीटर 5.75 मीटर 6.40 मीटर
चरगांवा 4.28 मीटर 4.48 मीटर 5.08 मीटर
असुरन 7.88 मीटर 8.28 मीटर 8.36 मीटर
मोहरीपुर 6.90 मीटर 6.75 मीटर 7.43 मीटर
मंडी परिषद 7.75 मीटर 7.83 मीटर 7.99 मीटर

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इन छोटे तरीकों से आप भी बचाइए जल
-घर के लॉन को कच्चा रखें।
-घर के बाहर सड़कों के किनारे कच्चा रखें अथवा अगर पत्थर लगाएं तो उसे लूज ही रखें
-पार्कों में रिचार्ज ट्रेंच बनाई जाये।

यहां होता है सबसे अधिक पानी बर्बाद, करना चाहिए उपाय
-मोटर गैराज में गाड़ियों की धुलाई से निकलने वाले जल की सफाई करके फिर से प्रयोग में लायें।
-औद्योगिक प्रयोग में लाये गये जल का शोधन करके उसका पुनः उपयोग करें।
-वाटर पार्क और होटल में प्रयुक्त होने वाले जल का उपचार करके बार-बार प्रयोग में लायें।
-होटल, निजी अस्पताल, नर्सिंग होम्स व उद्योग आदि में वर्षाजल का संग्रहण कर टॉयलेट, बागवानी में उस पानी का प्रयोग करें।
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सरकार अगर इस ओर ध्यान दें तो

-300 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के निजी मकानों एवं 200 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के सरकारी/गैर सरकारी ग्रुप हाउसिंग मकानों, सभी सरकारी इमारतों में रुफ टॉप रेन हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करना अनिवार्य है लेकिन इसका पालन नहीं कराया जाता।
-तालाबों व पोखरों की नियमित डिसिल्टिंग का कार्य।

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